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5 लाख से ज्यादा कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे


आज बहुतखुशी हो रही है। देर सही पर मन्दिर निर्माण प्रारम्भ हो रहा है
अयोध्या का वो ऐतिहासिक दिन आज भी याद है। हम उज्जैन से 500 से अधिक कार्यकर्ता सभी अपनी-अपनी रेल टिकट खरीद कर कारसेवा में गए थे। मेरे गट में हम 13 कार्यकर्ता थे। जिसमें प्रमुखरूप से ईश्वर पटेल, सेवारामजी राघवानी, स्व. जगदीश ललावत, स्व. रामगोपाल अग्रवाल, प्रह्लाद यादव, अशोक मूंदड़ा, सेमसन दास, बद्रि काका दमदमा, किशोर लश्करी आदि थे। अन्य जो साथ में थे उनके नाम अब याद नहीं आ रहे।
हम 2 दिसम्बर को रेल से रवाना होकर 3 को अयोध्या पहुँच गए थे। अलग-अलग जत्थे बनाए गए थे। ये जत्थे क्रमिक रूप से दिनांक 1- 2- 3 को रवाना हुए थे। हम तेरह साथी 3 तारीख को पहुँचकर सड़क किनारे घांस पर ही सो गए थे। घांस की व्यवस्था स्थानीय कार्यकर्ताओं ने की थी। सड़क किनारे के गड्ढे चारे से भरे गए थे ताकि कार्यकर्ता इन पर सो सकें। देश भर से आए अनगिनत कारसेवकों के रुकने, ठहरने के लिए अन्य कोई व्यवस्था संभव नहीं थी। खुले आसमान के नीचे ही सोने का अनुभव अनूठा था। प्रभु राम के काज के सम्मुख कोई कष्ट बाधक नहीं लग रहा था।
पूरे अयोध्या शहर की दीवारें मंदिर बनाने से संबंधित लिखे नारों से पटी हुई थी। उक्त लेखन उज्जैन निवासी बाबा सत्यनारायण मौर्य ने किया था। वे वहां पहले ही पहुंच गए थे। उन्होंने तो उज्जैन से निकलने वाली समस्त रेलों को भी नारों से पाट दिया था। अयोध्या आने- जाने वाली अनेक रेलों को जोशीले नारों से रंग दिया था। हमें वहां सूचना दी गई कि कल कार सेवा कैसे करना है।सरयू किनारों से एक-एक मु_ी रेत रुमाल या गमछे में बांधना है और जुलूस के रूप में राम मंदिर पहुँचना है। फिर निर्धारित स्थान पर रेती डालना है। उज्जैन के संत प्रतीराम महाराज नाराज हो गए। वे कहने लगे कि हमें क्या केवल रेती डालने को बुलाया है! क्या यही कारसेवा है! हमने पिछले वर्षों में सैकड़ों सभाएं की हैं।रामजन्म भूमि मुक्त करने की कसम खाई है। सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे। अब हम लोगों को क्या मुँह दिखाएंगे ? हमारी तो सारी तपस्या कलंकित हो जाएगी।
खैर, पतित पावनी सरयू के तट से रेत लेकर कारसेवकों का जुलूस आगे बढ़ता गया। जैसे ही हम मंदिर से लगभग आधा किलोमीटर दूर होंगे तभी सेवाराम जी बोले कि देखो कारसेवक गुम्बद पर चढ़ गए हैं। हम भी कार सेवा करेंगे। उन्हें समझाया कि संगठन का आदेशानुसार केवल नियत स्थान पर रेती ही डालना है। हमें अनुशासन नहीं तोडऩा है। लेकिन कुछ साथी नहीं माने और मंदिर की ओर दौड़ पड़े। दिनभर कारसेवा में एक गुम्बद ढह गया। अब दूसरा… फिर तीसरा… और पूरा ढांचा नेस्तनाबूद कर दिया गया। हमें भी कारसेवा करने का जोश था। हम फावड़ा-तगारी जुटाकर मटेरियल को हटाने में जुट गए। गजब का उत्साह था। लाखों कारसेवक प्रसन्नता से झूम रहे थे।
इस बीच पता चला कि उज्जैन का अशोक मंडलोई नही दिख रहा है। वो गुम्बद पर चढ़ा था। कहीं दुर्घटना न हो गई हो। हम पता लगाने अस्पताल भी गए। मृतकों में नाम नहीं था, संतोष हुआ। दिन भर का तनाव खुशी में बदल चुका था। राष्ट्रीय कलंक मिटाने में हमारा योगदान भी तो था। कारसेवकों ने प्रेस फोटोग्राफरों के कैमरे तोड़ दिए। हमें सेवा की उमंग थी, फोटो प्रमाण संजोने की नहीं। कईं लोग ढांचे से निकली ईंटों को अपने मिशन की सफलता की निशानी के तौर पर साथ ले जा रहे थे। शहर में कुछ स्थानों पर मामूली तोडफ़ोड़ भी हुई। वहीं से निकली मिट्टी और ईंटों से एक चबूतरा बनाया, बल्ली ठोकी, गुलाबी रंग का कपड़ा तीन तरफ तान दिया। उस अस्थायी रचना में श्री रामलला को विराजित किया। पुलिस फोर्स भी कारसेवा में बिल्कुल विघ्न नहीं डाल रहा था। वे भी उत्साहित लग रहे थे। दो नारे पूरे वातावरण में गूंज रहे थे

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  1. हो गया काम, जय श्री राम
  2. अभी तो पहली झांकी है।
    मथुरा, काशी बाकी है।।

    दिनांक 8 को कफ्र्यू लग गया। हमने एक कमरा 500 किराए पर लिया, दो रात रुके। ऐलान हुआ कि कारसेवक अयोध्या खाली करें। दिनांक 11 को वहां से हमें पुलिस ने सहयोग कर स्टेशन पहुँचाया। स्टेशन पर हजारों लोगों का हुजूम खड़ा था। जिस ट्रेन में हम 11 बजे जैसे तैसे घुसकर बैठे वह कहीं पौने नौ बजे जाकर लखनऊ पहुँची। बाराबंकी में हमारी ट्रेन पर मुस्लिम भीड़ ने हमला कर दिया था। तकरार हुई। मेरठ, अलीगढ़ के कारसेवक जय श्री राम के नारे लगाकर उतरे और उन्हें बड़ी दूर तक खदेड़कर आये।
    हम लखनऊ से पुष्पक एक्सप्रेस पकड़कर सुबह भोपाल पहुंचे। वहां से अन्य ट्रेन द्वारा दोपहर को उज्जैन पहुँच पाए। मालूम पड़ा उज्जैन में कुछ कांग्रेसी नेताओं द्वारा मुस्लिम भाइयों को भड़काने से दंगे का माहौल है और कर्फ्यू लगा हुआ है। पोलिस वेन में बैठकर घर पहुंचे। घर के लोग चिंतित थे। हमारे अपने घरों में सफल और सुरक्षित पहुंचने पर प्रमुदित हुए।।
    -प्रकाश चित्तौड़ा, कारसेवक उज्जैन
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