माटी की महिमा न्यूज /उज्जैन
कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के अवसर पर धार्मिक नगरी बीती रात गोपाल मंदिर में हरि-हर मिलन की परंपरा को पूरा किया गया। हर (भगवान महाकाल) चांदी की पालकी में सवार होकर गोपाल मंदिर पहुंचे, जहां हरि (भगवान विष्णु) को तुलसी की माला भेंटकर सृष्टि का भार सौंपा।

पौराणिक मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक (चतुर्मास) में भगवान विष्णु (हरि) सृष्टि के संचालन का भार भगवान महाकाल को सौंपकर राजा बलि का आतिथ्य स्वीकारने के लिए पाताल लोक चले जाते हैं। चार महीने तक पालात लोक में रहते हैं। इस दौरान भगवान महाकाल सृष्टि का संचालन करते हैं। देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु वापस वैकुंठ धाम आ जाते हैं। इसके बाद वैकुंठ चतुर्दशी पर हर (भगवान महाकाल) सृष्टि का भार हरि को सौंपने के लिए उनके दरबार गोपाल मंदिर पहुंचते हैं। धार्मिक नगरी में वर्षों से इस परंपरा को प्रतिवर्ष भव्य रूप से मनाया जाता है। इसी परंपरा में शनिवार की रात 11 बजे राजाधिराज बाबा महाकाल (हर) चांदी की पालकी में सवार होकर महाकालेश्वर मंदिर से ठाठबाट के साथ गोपाल मंदिर की ओर रवाना हुए। हर की सवारी मंदिर से निकलते ही महाकाल के जयघोष से गगन गुंजायमान हो गया। कड़े सुरक्षा पहरे में भगवान की पालकी रात 12 बजे गोपाल मंदिर पहुंची। सुरक्षा घेरे में पालकी उठाकर चल रहे कहारों के अलावा केवल पुजारी, पुरोहित शामिल थे। सवारी मार्ग पर आम श्रद्धालुओं के दर्शन और पूजन की अनुमति नहीं थी और हिंगोट चलाने और आतिशबाजी पर भी प्रतिबंध था। इसके बावजूद कुछ श्रद्धालु इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए पहुंच गए और फुलझडिय़ां जलाकर हरि-हर मिलन का आनंद उठाया। इसके बाद गोपाल मंदिर में हरि-हर मिलन हुआ। यहां भगवान महाकाल व गोपालजी को सम्मुख बैठाकर पूजा-अर्चना की गई। हरि हर मिलन के दौरान गोपाल मंदिर के पुजारियों ने बाबा महाकाल की पूजा-अर्चना पर गोपालजी की ओर से उन्हें तुलसी की माला पहनाई। वहीं महाकाल मंदिर के पुजारियों ने गोपालजी का पूजन कर बिल्व पत्र की माला पहनाई गई। इस तरह सृष्टि का भार हर द्वारा हरि को सौंपने का कार्य संपन्न हुआ। हरि-हर मिलन के बाद महाकाल की सवारी पुन: निर्धारित मार्ग से वापस महाकालेश्वर मंदिर पहुंची।

ड्रोन कैमरे से रखी गई नजर
कोरोना संक्रमण के चलते इस बार हरि हर मिलन आम श्रद्धालुओं की गैरमौजूदगी में पूरा किया गया। प्रशासन ने धारा 144 लागू की थी। सवारी मार्ग पर ड्रेन कैमरे से नजर रखी जा रही थी। बाबा महाकाल की पालकी के आगे रस्सी का घेरा बना हुआ था। वहीं ढोल की थाप पर पालकी आगे बढ़ रही थी। हर वर्ष हरि हर मिलन के दौरान भव्य आतिशबाजी का नजारा दिखाई देता है। इस बार प्रशासन के प्रतिबंध के चलते आतिशबाजी नहीं हो पाई। ड्रेन कैमरे से आतिशबाजी करने वालों पर नजर रखी जा रही थी।