माटी की महिमा न्यूज /उज्जैन
गर्मी की दस्तक के साथ ही गरीबों का फ्रीज कहा जाने वाला मटका बाजार में सूखते गलों की प्यास बुझाने के साथ ठंडक पहुंचाने के लिए आ चुका है जिस पर महंगाई की मार के साथ कोरोना का असर दिखाई दे रहा है।
मिट्टी से बना मटका गर्मी के दिनों में गरीबों का फ्रीज कहा जाता है। जिस तरह से लगातार तापमान बढ़ रहा है लोगों को मटकों की याद आने लगी है। कुम्हारों ने भी दिन-रात मेहनत कर मटकों से लेकर नांद तक तैयार कर ली हैं, जिसका बाजार शहर के कुछ स्थानों पर लगा नजर आने लगा है। मटकों पर महंगाई की मार के साथ कोरोना का असर दिखाई दे रहा है। बाजार में मटकों की कीमत 100 रूपए से लेकर 500 रूपए तक की है। मटके अलग-अलग कीमतों में डिजाइन अनुरूप अपनी कीमत अपनाए हुए हैं। वहीं नांद 400 से 600 रुपए की कीमत में उपलब्ध है। इस बार कुम्हारों पर नांद बनाने के बाद आर्थिक बोझ का खतरा भी नजर आने लगा है। जिस तरह से कोरोना संक्रमण फैल रहा है नांद की बिक्री कम हो रही है। विदित हो कि नांद धार्मिक नगरी में प्याऊ के साथ शहर के गली मोहल्ले और चौराहों पर लगाई जाती हैं। कोरोना की वजह से लोग खरीददारी कम कर रहे हैं।