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श्राद्ध पक्ष में कौवे हुए क्वॉरेंटाइन तलाशने पर भी नहीं मिल रहे

माटी की महिमा न्यूज /उज्जैन
श्राद्ध पक्ष में कौवे का महत्व माना जाता है कोरोना संक्रमण काल में कौओ की स्थिति क्वॉरेंटाइन जैसी नजर आ रही है ।वह तलाशने पर भी नहीं मिल पा रहे हंै।
16 दिवसीय श्राद्ध पक्ष की शुरुआत मंगलवार से हो गई है। पितरों की आत्म शांति के लिए श्राद्ध पक्ष में कौवा को भोजन कराना शुभ माना जाता है। 2 दिनों से श्राद्ध पक्ष की तिथि को पूरा कर कौवे को भोजन कराने के लिए तलाशा जा रहा है। लेकिन उनकी स्थिति कोरोना संक्रमण काल में क्वारंटाइन जैसी दिखाई दे रही है। श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों को याद कर लोगों की तलाश में दूर-दूर तक पहुंच रहे हैं। लेकिन कौवे मिल नहीं पा रहे हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार अगर श्राद्ध पक्ष में कौवे ने भोजन ग्रहण कर लिया तो माना जाता है कि पितरों का आश्रय परिवार पर बना हुआ है।

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भोजन नहीं करने पर पूर्वज विमुख और नाराज माने जाते हैं। वहीं कौवे का आपके घर तक आना अतिथियों के आगमन का सूचक भी माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कौवे ने अमृत पी लिया था जिसके चलते उसकी स्वभाविक रूप से मृत्यु नहीं होती है। कौवा अतृप्ता का प्रतीक माना जाता है और पितरों की तृप्ति के लिए अतृप्ता भोजन उसे करा कर प्राप्त किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ही श्राद्ध पक्ष में कौवे को काफी महत्व मिला हुआ है। लेकिन धार्मिक नगरी में इन दिनों कौवे की कमी दिखाई दे रही है। लोग उन्हें तलाशने के लिए शिप्रा नदी के किनारे बने धार्मिक स्थलों से लेकर कई जगह पहुंच रहे हैं। जिन्हें कौवा मिल रहा है वह अपने आप को धन्य समझ रहे हैं।
 

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